खमभख़्त यादें !
बीती बातें को याद करने की खोशिश कि तो
याद आया ,
प्यार की बातें हम भी किया करते थे ,
सुबह-शाम , रात -दिन ,
इतना की सूरज भी शर्म के मारे डुब जाता था
ओर प्यार की लाली आसमान में भिखैर देता था ,
पर !
ये खमभख़्त प्यार किस काम कि ,
जो तुम्हें आँसू दे दी ,
इतना दुख दीया की ,
ये प्यार था ,
हमें कहने में शर्म आ गई ।
ये खमभख़्त प्यार किस काम कि ,
जिसने हमें आशिक़ से बेवफ़ा बना दी ।
भाईयों हमें इतना बता दो , हम कहाँ छुक गए ,
उसकी पर्वाह करके , हम बेवफ़ा बन गए !
उस पर खुशियाँ लूटाने की खोशिश में ,
हम ही लूट गए ।
उस पर तोफों लूटाने की खोशिश में ,
हम ही भिखारी बन गए।
उसे खिलाने की खोशिश में ,
हम ही भुखें रह गए ।
उसकी पर्वाह करके , हम बेवफ़ा बन गए,
भाईयों हमें इतना बता दो , हम कहाँ छुक गए ?!
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